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गधे

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कृश्न चन्दर होते तो देखते कि एक गधे की वापसी फिर से हो गयी है। गोपाल प्रसाद व्यास जी एक बार फिर से गधों पर नई कविता लिख सकते थे।इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं। जिधर देखता हूँ गधे ही गधे हैं॥ गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है। हिन्दोस्ता

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