सांझ के आँगन में..लिपटी धरा से अरूणिमा..गोधूलि बेला ये..बदल रही भाव भंगिमा..सुहानी हो शाम ये..खोल रही दरवाजा..पंछियों का कलरव..भर रहा असीम ऊर्जापत्थर-पत्थर गा रहा..राग मल्हार यहाँ..सागर का ज्वार देखो..उठकर गिर रहा..गगन होने लगा स्याह अब..चाँद भी सजने को है..बारात सिता