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गड़गड़ाती

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टिपटिपाती है बारिस, मानों मेघों में हों छेंद।गड़गड़ाती बिजलियाँ, ध्वनि बहुत है तेज़।तीव्र कभी-कभी हौले, जो बड़ा लगाये जोर।कभी इधर-कभी उधर, मानों लगी हो डोर।मेघ वारि भरकर लाए, और दिया निचोड़।और लाओ और लाओ, ऐसी लगी है होड़।।-सर्वेश कुमार मारुत

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