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घनाक्षरी

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कलाधर छन्दशारदे समग्र शुद्ध, भाव का विचार सार,दिव्य ज्ञान की मिठास, मातु आप दीजिये।काम क्रोध मोह लोभ, पाप को मिटाय मातु,चित्त की मलीनता को, दूर आप कीजिये।कीजिये विनाश मातु, रोग दोष का सदैव,अंधकार को मिटा, हमे उबार लीजिये।धर्म कर्म रीति नीति, सभ्यता स्वभाव शान्ति,सत्य नेह भावना, सुज्ञान मातु दीजिये।अ

कलाधर छन्दशारदे समग्र शुद्ध, भाव का विचार सार,दिव्य ज्ञान की मिठास, मातु आप दीजिये।काम क्रोध मोह लोभ, पाप को मिटाय मातु,चित्त की मलीनता को, दूर आप कीजिये।कीजिये विनाश मातु, रोग दोष का सदैव,अंधकार को मिटा, हमे उबार लीजिये।धर्म कर्म रीति नीति, सभ्यता स्वभाव शान्ति,सत्य नेह भावना, सुज्ञान मातु दीजिये।अ

कृपाण घनाक्षरी [अंत्यानुप्रास ]कृपाण अंत्यानुप्रास , छ्न्द गेयता विकाश, यति गति हो प्रवाह, आठ चौगुना विवेक।वर्ण वर्ण घनाक्षरी, कवित्त चित्र चाल से, अंत गाल गुरु लघु, भाव भावना प्रत्येक।अनुप्रास पाँच पुत्र, छेक वृत्य श्रुत्य अंत्य, संग में लाटानुप्रास , छ्न्द अलंकार ने

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