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छन्द

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कलाधर छन्दशारदे समग्र शुद्ध, भाव का विचार सार,दिव्य ज्ञान की मिठास, मातु आप दीजिये।काम क्रोध मोह लोभ, पाप को मिटाय मातु,चित्त की मलीनता को, दूर आप कीजिये।कीजिये विनाश मातु, रोग दोष का सदैव,अंधकार को मिटा, हमे उबार लीजिये।धर्म कर्म रीति नीति, सभ्यता स्वभाव शान्ति,सत्य नेह भावना, सुज्ञान मातु दीजिये।अ

कलाधर छन्दशारदे समग्र शुद्ध, भाव का विचार सार,दिव्य ज्ञान की मिठास, मातु आप दीजिये।काम क्रोध मोह लोभ, पाप को मिटाय मातु,चित्त की मलीनता को, दूर आप कीजिये।कीजिये विनाश मातु, रोग दोष का सदैव,अंधकार को मिटा, हमे उबार लीजिये।धर्म कर्म रीति नीति, सभ्यता स्वभाव शान्ति,सत्य नेह भावना, सुज्ञान मातु दीजिये।अ

मैं शब्द रूचि उन बातों की जो भूले सदा ही मन मोले-2अँगड़ाई हूँ मैं उस पथ का जो चले गए हो पर शोले-2हर बूँदो को हर प्यासे तक पहुँचाने का आधार हूँ मैं-2मैं बड़ी रात उन आँखो का जो जागे हो बिना खोलें-2जो कभी नहीं बोला खुल कर वो आशिक़ की जवानी हूँ।-2मीरा की पीर बिना बाँटे राधा के श्याम सुहाने हैं।-2

नफरत नहीं उर में रखें, अब प्रेम की बौछार हो। इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।। अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा। ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ।। ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे । अनुराग से तुमको मना लें ये हमें अधिकार हो। जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चल

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*कवयित्री विशेषांक* के लिए रचनाएँ आमंत्रित------

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