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छेड़

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न छेड़ प्रकृति को।गर्मी से झल्लाउ, ठंडी से घबराऊँ।डर वर्षा की बूँदों से छिप जाऊ।गिरते पतझड़ के पत्तो से शरमाऊं। बहे बयार तूफानी गति से आँखे भी अंधी हो जाए। जितना प्यार करु प्रकृति से, उतना ही थर्राऊ।कर प्रकृति का विनाश, महामारी को फैलाया।जब-जब आई महामारी से, हर मानव हरि-हरि चिल्लाया।न छेड़ प्रकृति को व

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