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दोहावली

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*वक्तवक्त-वक्त की बात है,सबके बदले ढंग।वक्त पड़े ही बदलते,खरबूजे के रंग।*कविताकविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।*भावभाव बिना जीवन नहीं,नीरस होते प्राण।ढोते बोझा व्यर्थ का,कैसे हो परित्राण।*प्रेम प्रेम समर्पण माँगता,जैसे चातक चाह।स्वाति बूँद की आस में,कितनी भरता आह

हमें काटते जा रहे ,पारा हुआ पचास।नित्य नई परियोजना, क्यों भोगें हम त्रास।।धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इस पर गौर ।।भोजन का निर्माण कर ,हम करते उपकार।स्वच्छ प्राण वायु दिये , जो जीवन आधार ।।देव रुप में पूज्य हम ,धरती का सिंगार ।है गुण का भंडार ले औषध की भरमार ।।संतति

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शिक्षक दिन पर व मंच व मित्रों को हार्दिक बधाई, गुरुजनों को नमन! ॐ जय माँ शारदा!"दोहा"शिक्षक दिन पर आप को, बहुत बधाई मीत।मिला ज्ञान इनसे सुखद, गौतम गाए गीत।।बहुत धीर गंभीर हैं, लिए ज्ञान का बोधनमन करूँ शारद पुता, नित नव नूतन शोध।।माँ शारद संचित करो, मेरे अंदर ज्ञान।नमन करूँ आराध्य को, जय गणेश भगवान।।

"दोहावली"गली छोड़ कर क्यूँ गए, ओ मेरे मन मीतकोयल अब गाती नहीं, सुबह सुरीली गीत।।-1दूर जा रहें हैं सभी, जैसे जूनी रीत।गाँव छोड़ कर बस रहे, शहर अनोखी प्रीत।।-2सुना रहे हैं अब सभी, अपने मन की गीत।मानों ओझल हो गई, लोक प्रीत संगीत।।-3बूढ़ी दादी की कथा, अरु चौपाली हीत।शंकित लगती चाल है, दम्भित लगते मीत।।-4फै

"दोहावली"हँसते मिलते खेलते, दिल हो जाता खास।प्रेम गली का अटल सच, आपस का विश्वास।।-1राधा को कान्हा मिले, मधुवन खुश्बू वास।थी मीरा की चाहना, मोहन रहते पास।।-2गोकुल की गैया भली, थी कान्हा के पास।ग्वाल-बाल की क्या कहें, हुए कृष्ण के दास।।-3यशुदा के दरबार में, दूध दही अरु छास।मोहन मिश्री ले उड़े, माखन मुख

“दोहावली” लिखने बैठा वयखता, किसका लिया उधार पूछा माँ से तूँ बता, कैसे हौं उद्धार॥-1 बोली जननी लाड़ले, तूँ तो खाटी मूर जा औरों से पूछ ले, देख रहे सब घूर॥-2 बोले पिता तपाक से, दे दे मेरा सूद गिनती करिकरि थक गया, बैठा आँखें मूद॥-3 भैया भाभी सो गए, बंद किए किरदार हिस्सा किस्सा चातु

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