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द्रोही

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धूल से पटी पड़ी एक किताब को झटक,उसके पुराने पन्नों को धीरे से पलटते रहा;अतीत को वर्तमान के झरोखे से झांकते रहा।मै पिछले कई वर्षों का हिसाब देखता रहा,अंधेरे में गुजारे कई दिनों को याद करता हुआ;सोचता रहा क्या ये उजियारा दिन हमेशा का हुआ।वक़्त ने मुझे अपने आप को तलाशने का मौका ना दिया,गुलाम भारत को स्व

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