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दफ़न

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जो बड़ा बना,वह गया।कली से खिलकर फूल बनकरबिखर गया।कोपलों से खिलकर बन पत्ताबिखर गया।नन्हा सा पौधा बनकर पेड़,वह भी कट गया।गिरी जो बर्फ पहाड़ो कोढकने के लिए वह भी बह गई।जमीन से उठी पार्टी नेआसमान चूमने के कोशिश किया।वह भी सिमट गईं इस जहांमे।गरीबी से उठकर अमीरों कोजानने की कोशिश किया,हो हताश ज़िंदगी से मौत क

भाषा ने जो कहा।(साहित्यकार और बनारस के गीतो के राजकुमार नामवर सिंह को समर्पित कविता)जो खेल सका दुनियाई भाषा से वह खेल बहुत निराला हैं।किसान का हल, जवान की ताकत, लिखने वाले की कलम, बोलने वाले की आवाज।जब चारो मिलते हैं देश दुनिया के बागों मे महकते सुंदर फूल खिलते हैं।दुनियाँ जिससे ऊपर उठती हैं, यह दफ़न

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अगर दोबारा कहीं मिले चौराहे परमुबारक मुँह मत मोड़ना, आरक्षण से है, रहेगे, आगे भी बढ़ेगे, हमें मिटाने से हम नहीं मिटेगेजहाँ भी दफ़न होगे, आपके रास्ते पे वटवृक्ष बन ऊग आयेगे ....-हरेश परमार

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