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धरें

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सबलोग धरें हिय प्रेमसुधा, सबके हित में सब कर्म करें। सबकी मधुबानि सुहावनि हो, सबके उर से मधुभाव झरें। सबलोग प्रसन्न रहें जग में, बहु कष्ट सहें पर धीर धरें। नित नेह बढ़े हरि के पग में, प्रभु मंगलकोष अपार भरें।

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