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परदेश

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आज मन की हलचलों ने कदमों को चलने न दिया।बहुत सोचा जाऊं या ना जाऊ । घर दूर, अपने आंखों से दूर, मौसम भी मगरूर ठंडी का है।सफर सहर में है। शाम की बातों ने मन को बोझिल कर दिया था।सब हलचलों और बोझिल शाम को समेट अपनी चारपाई पर तकिए के नीचे दबा लिया था। ठंडी की सिहरन

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