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फुरसतिया

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"हाचड़" (फुरसतिया मनोरंजन)कौवा अपनी राग अलाप रहा था और कोयल अपनी। मजे की बात, दोनों के श्रोता आँख मूँदकर आत्मविभोर हो रहे थे।अंधी दौड़ थी फिर भी लोग जी जान लगाकर दौड़ रहे थे। न ठंड की चिंता थी न महंगाई के मार की, न राष्ट्र हित की और न राष्ट्र विकास की। अगर कुछ था तो बस नाम कमाने की ललक और बड़ी कुर्सी की

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