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बांसुरी

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Hindi poem - Kumar vishwas बांसुरी चली आओ तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगासाँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगातान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण हैबाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण हैतुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी हैतीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी हैरात की उदासी को याद संग खेला है कुछ गलत ना कर बैठें मन ब

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"गीत"चैन की बांसुरी बजा रहे बाबासु-धर्म की धूनी जगा रहे बाबाआसन जमीनी जगह शांतिदायी नदी पट किनारे नहा रहे बाबा॥..... चैन की बांसुरी बजा रहे बाबामाया सह काया तपा रहे बाबा सुमन साधना में चढ़ा रहे बाबा सुंदर तट लाली पीत वसन धारीराग मधुर संध्या

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