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बिन

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बिन डाल का पत्ता बिन डाल का पत्ता, उसके लिए जग सारा होता है। पहुंच जाता है बिन रोक टोक, गली, छत, बालकनी, मकान, दुकान, राह अनेक.. बिन डाल का पत्ता, आवारा बंजारा होता है। जहां ले चले, हवा के झोंके उनकेे संग उसका जहां में आना जाना दूर, दराज तक होता है। बिन डाल का पत्ता, बेचारा होता है। आ जाता है, कितनो

तेरे बिन भी कभी हमें जीना होगा सोचा कहाँ था, बिन धड़कन के भी दिल धड़केगा सोचा कहाँ था, हमको तेरी खबर जमाने से अब तो मिलने लगी हैं, तू इस तरह हमसे बेखबर हो जाएगा सोचा कहाँ था। ©सखी

“मुक्तक”मापनी- २१२२ २१२२ २२१२ २१२जिंदगी को बिन बताए कैसे मचल जाऊँगा। बंद हैं कमरे खुले बिन कैसे निकल जाऊँगा। द्वार के बाहर तेरे कोई हाथ भी दिखता नहीं- खोल दे आकर किवाड़ी कैसे फिसल जाऊँगा॥-१ मापनी- २२१२ २२१२ २२१२ २२१२जाना कहाँ रहना कहाँ कोई किता चलता नहीं। यह बाढ़ कैसी आ गई

मापनी -२१२२ २१२२ २१२२ २१२ सामंत- आ पदांत-दिख रहा“गीतिका”अटल बिन यह देश अपना आज कैसा दिख रहाहर नजर नम हो रही पल बे-खबर सा दिख रहाशब्द जिनके अब कभी सुर गीत गाएंगे नहींखो दिया हमने समय को अब इंसा दिख रहा।।याद आती हैं वे बातें जो सदन में छप गईझुक गए संख्या की खातिर नभ सितारा

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