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भूत-प्रेत

hindi articles, stories and books related to Bhut-pret


                           19 - apr - 2022क्या सचमुच मुझे ये डायरी लिखनी चाहिए पर मैं रोज - रोज लिखुंगा क्या इसमें। लिखने लायक कोई

बुरा समय आपके जीवन के उन सत्यों से सामना करवाता है ,जिनकी आपने अच्छे समय में कभी कल्पना भी नहीं की होतीआप के अच्छे समय मे आप के हितैसी बहुत होंगे, लेकिन जब भी तकलीफ का समय आएगा तब कुछ चुनिंदा ही दिखें

■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■ भाग 45              (पिशाचिनी सिद्धि)---------------------------------------------------------------------------- ------हाँ भावी जी, बत

■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■ भाग 39               (पिशाचिनी सिद्धि)_________________________________________________________________________________प्रिय मित्रों आप

■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■ भाग 37                 (पिशाचिनी सिद्धि)_______________________________________________________________________________ प्रिय पाठक

■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■भाग 16            (पिशाचिनी 2 रिटर्न)--------------------------------------------------------------------------------प्रिय मित्रों आपनें गतां

डायन ( एक अधूरी प्रेम कहानी….. ) डायन एक प्रकार का भूत ही होती है । पर …. एक जिंदा महिला को डायन बनने के लिए … डायन साधना करनी पड़ती है । यह साधना किस प्रकार से होती है, यह तो नहीं पता । पर …. हमारे स

जितनी बार भी पीछे मुड़ कर देखना चाहा उतनी ही बार मुझे कोई नजर नहीं आयामुझे तो ऐसा ही लग रहा था कि यहां पर कोई भूत है जो दिखाई नहीं दे रहा हैलेकिन वह लगातार चल रहा है किसी भी वस्तु का एहसास तब होता हैज

उसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदला । दो दिनों की असीम व्यस्तता और भागदौड़ के बाद पवन, प्रोफेसर प्रभाकर, गृह मंत्री तथा अंशुल गृह मंत्री महोदय के कक्ष में उपस्थित थे । "धन्यवाद पवन जी ! गर्व है हमें आप पर

दूसरे दिन  फोन की लगातार बजती घंटी में पवन को नींद से जगा दिया । लेटे ही लेटे उसने स्पीकर कान से लगा कर कहा - "हेलो !" "मैं कमिश्नर बोल रहा हूँ ।" दूसरी ओर से अधिकार पूर्ण स्वर में कहा गया । "जी,

रात गहरा गई थी । घड़ी की बड़ी सुई बारह के आगे बढ़ गई थी जबकि छोटी सुई बारह तक पहुंचने की कश्मकश में थी ।  बाहर यद्यपि तारों का प्रकाश था किंतु वह इतना ही था कि वृक्ष, इमारतें आदि साये के रूप में ही नज

दूसरे दिन .... पवन उस दिन सुबह आठ बजे ही कमिश्नर साहब के घर पहुंच गया । गृह मंत्री द्वारा दिया गया आज्ञापत्र उसे कभी भी किसी भी अधिकारी से मिलने और उसका सहयोग प्राप्त करने के लिए पर्याप्त था ।  कमिश

अंधेरी पुरानी सुरंग जैसे रास्ते में पवन आगे बढ़ रहा था । उस समय उसका संपूर्ण शरीर सतर्कता की प्रतिमूर्ति बना हुआ था । अंशुल से उसने पहले से ही उस गुप्त मार्ग के विषय में पूरी जानकारी ले ली थी और अब उस

सुबह पाँच बजे ही पवन में बिस्तर छोड़ दिया । तब तक प्रोफ़ेसर प्रभाकर भी उठ चुके थे ।  चाय की टेबल पर पवन ने पूछा - "कैसी है वह ?" "अब बेहतर है । बहुत भूखी प्यासी रही है इसलिए कमजोर हो गई थी । कल रा

वह रात अंधेरी थी । शायद नवमी की रात । अंधेरा पक्ष और दूर तक फैला सन्नाटा । उस अंधेरे में समुद्र तट पर स्थित चट्टानें किन्हीं भयंकर दैत्यों की सेना के समान प्रतीत हो रही थीं । पवन उस समय काले वस्त्रों

दूसरे दिन सुबह उठ कर वह नित्य कर्म से निवृत्त होकर सीधे प्रोफ़ेसर की कोठी पर जा पहुंचा । "अरे पवन ! बहुत सही समय पर आए । आओ, नाश्ता तैयार है ।" प्रोफेसर ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया । "इसीलिए

बिस्तर पर लेट कर वह फिर उसी समस्या में डूब गया । वह सोचने लगा - क्या वह फाइल देश से बाहर चली गई होगी ? नहीं, इतनी जल्दी यह संभव नहीं लगता किंतु इस संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता । पता नहीं व

वह एक छोटा सा हालनुमा कमरा था जिसके मध्य एक लंबी अंडाकार मेज रखी थी । मेज पर अत्यंत सुंदर हल्के पीले रंग का मेजपोश बिछा था जिस पर छोटे छोटे फूलों के गुच्छे रंगीन धागों से कढ़े हुए थे । मेज के बीच एक पी

तीसरा दिन ... प्रोफेसर प्रभाकर के बंगले में रहते पवन को आज तीसरा दिन था । सुबह की चाय के साथ रहमान ने उस दिन के प्रमुख समाचार पत्र लाकर मेज पर रख दिए थे । चाय का प्याला उठाते हुए पवन ने अखबार उठा लि

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