प्यार हो या परिंदा,दोनों को आज़ाद छोड़ दो,अगर लौट आया तो तुम्हारा,और अगर न लौटा तो वह तुम्हारा था ही नहीं कभी
क्या दुख है सागर को कहा भी नहीं सकताआँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता तुम छोड़ रही है तो ख़ता इस में तुम्हारी क्या हर शख़्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता
सफ़र है ज़िंदगी काउल्फ़त-ए-बेख़ुदी काख़ुद को तरासकर फिर निखरना होगाहमें ज़िंदा रहना होगा
परंज्योति पराकाश परात्पर परंधाम, सुमित्रापुत्रसेवित सर्वदेवात्मक श्रीराम। सर्वदेवादिदेव सबसे सुन्दर यह नाम, रघुपुङ्गव राघवेंद्र रामचन्द्र राजा राम।। #Ram
दिल से दिल तक, जब दिल पुकारे तो...हर दिल तक, दस्तक जाती है दिल की...
राव हम्मीर देव चौहान रणथम्भौर "रणतभँवर के शासक थे। ये पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह था। ये इतिहास में ''हठी हम्मीर के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। जब हम्मीर वि॰सं॰ 1339 (ई.स.
अजबदे पंवार महाराणा प्रताप की पत्नी तथा अमरसिंह सिसोदिया की माँ थी। इनके पिता का नाम राव माम्रक सिंह तथा माता का नाम हंसा बाई था। अजबदे पंवार ने महाराणा प्रताप की राजनीतिक मामलों में काफी मदद की थी।
पृष्ठभूमिप्राचीनकाल से हिंदुओं की पुरानी युद्ध-प्रणाली प्रचलित थी, जिसमें दोनों पक्षों के बीच में खंबे के रूप में एक चिन्ह रखा जाता था शंख, भेरी, आदि बजाकर युद्ध प्रारंभ किया जाता था। शत्रु को बिना इश
छत्रपति शिवाजी महाराज अप्रतिम थे। उनका पराक्रम, कूटनीति, दूरदृष्टि, साहस व प्रजा के प्रति स्नेहभाव अद्वितीय है। सैन्य-प्रबंधन, रक्षा नीति, अर्थशास्त्र, विदेश नीति, वित्त, प्रबंधन —सभी क्षेत्रों में उन
महाराणा प्रताप... गिरा जहाँ पर खून वहाँ का पत्थर-पत्थर जिंदा है, गिरा जहाँ पर खून वहाँ का पत्थर-पत्थर जिंदा है, जिस्म नहीं है मगर नाम का अक्षर-अक्षर जिंदा है, जिस्म नहीं है मगर नाम का अक
महाराणा प्रताप की जीवनी :- नाम : महाराणा प्रताप जन्म : 9 मे, 1540 कुम्भलगढ़ दुर्ग पिता : राणा उदय सिंह माता : महाराणी जयवंता कँवर घोड़ा : चेतक महाराणा प्रताप सिंह ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार वि
साधुसाधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको क
गुरु रविदास कोमल हृदय के महापुरुष थे। एक बार लहरतारा तालाब जो कि कबीर की प्रकटस्थली है, उन दिनों वहाँ पर घना जंगल था, वहाँ एकांत रमणीय स्थान पर गुरु रविदास ध्यान की अवस्था में बैठे थे। आसपास प्रकृति क
पण्डितराज जगन्नाथ शास्त्री तैलंग . सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध था, दूर दक्षिण में गोदावरी तट के किनारे एक छोटे से राज्य की राज्यसभा में एक विद्वान ब्राह्मण। सम्मानित पद पर आसीन थे
आज ही के दिन ठीक एक सौ साठ साल पहले यानी 10 मई 1857 को जिस ऐतिहासिक क्रांति का सूत्रपात मेरठ से हुआ वह कई अर्थों में विलक्षण थी । क्रांति का क्षेत्र व्यापक था और इसका प्रभाव लम्बे समय तक महसूस किया गय
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू की तरह हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के पहली पंक्ति के नेता थे। पर अपने आप को भारत माता पर उत्सर्ग करने की आतुरता में उनकी तुलना शहीद भगत सिंह जैसे वीरों
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के राजनैतिक क्षितिज में पिछले कई दशकों से सर्वाधिक चमकता हुआ सितारा थे। अपनी मिलनसार प्रवृत्ति, विलक्षण वाकपटुता, मनमोहक वक्तृत्वकला और असाधारण प्रतिउत्पन्नमति के कारण सारे देश