10 जनवरी 2020
समाज का चश्मा चंद रस्मों रिवाज का मोहताज है, तभी वो अपनेपन की पहचान देता है। बिन रस्मों के अपनापन भी आवारगी, अय्याशी की भाषा बन जाता है।