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रस्सी

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पानी को पानी रहने दोनदी अकेले बहकर अनेको घाट बनाती थी। हर घाट निराला होता था।पनघट मे पानी भारी बाल्टी रस्सी से खीच कर औरत सुस्ताती थी।भर मटका कलस फुरसत मे सखी सहेलियों से बतियाती थी, बेटी बहू।चरवाहा बैठ पेड़ की छांव मे मन से गीत गुंगुनाता, गीले होठो से। जानवर तालाबो मे डुबकी लगाते तैरते इतराते ले

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