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hindi articles, stories and books related to laghu


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सज़ा**** पौ फटते ही उस मनहूस रेलवे ट्रैक के समीप आज फिर से भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी। यहाँ रेल पटरी के किनारे पड़ी मृत विवाहिता जिसकी अवस्था अठाइस वर्ष के आस-पास थी, को देखकर उसकी पहचान का प्रयास किया जा रहा था। सूचना पाकर पुलिस भी आ च

एक बार एक धनी व्यापारी विश्व भ्रमण के लिए निकला. घुमते हुए वह नीदरलैंड के शहर एम्सटर्दम पंहुचा. यह शहर पर्यटकों को बहुत प्रिय है. वहां उसने एक बहुत ही भव्य एवं सुन्दर महल देखा. उस महल को देखकर उसे अपना वि

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बैंक का पब्लिक डीलिंग का समय समाप्त हो गया था और गेट बंद हो चुका था. इसलिए बैंकिंग हाल में हलचल घट गई थी. ऐसे में कपूर साब इधर उधर नज़र घुमा रहे थे. - कपूर साब किसे ढूंढ रहे हैं जी?- बच्चे अज स्वेर तों किसी कुड़ी नाल गल नई कित्ती, कह कर कपूर साब मिसेज़ सहगल के पास जाकर बतिया

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छुट्टी आ रही है बच्चो एक हफ्ते की. दादी के घर जाना है क्या?- हाँ हाँ! ट्यूबवेल में नहाएंगे.- तो अपने अपने बस्ते तैयार कर लो. सन्डे सुबह छे बजे निकलेंगे. तुम दोनों वहीँ रुक जाना हम दोनों वापिस आ जाएँगे. फिर अगले सन्डे मैं तुम दोनों को वापिस ले आऊंगा. ठीक है?- पर खटारा बस

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मयंक का हठयोग ( लघु कथा ) ********* अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सुबह का

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पापा ने अपने और बच्चों के कपड़े निकाले, जूतों पर ब्रश मारा, बस्ते तैयार करवाए. उधर किचन से आवाज़ आई- नाश्ता ले जाओ.टोनी और बोनी ने अपने अपने परांठे गोल कर के हाथ में पकड़े और एक एक कप दूध के साथ गटक गए. फिर जूते कसे और भारी भारी बस्ते टांग लिए. अंदर से आवाज़ आई,- चाबी संभाल ल

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गुड़िया का नाम श्वेता जरूर था पर रंग थोड़ा सांवला ही था. तीन साल की श्वेता सारे कमरों में उछलती कूदती रहती थी. उसकी दोस्ती महतो से ज्यादा थी जो उसे किचन से कुछ ना कुछ खाने के लिए देता या फिर रोती तो दूध की बोतल तैयार कर के दे देता था. शाम की

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इक मधुर एहसास है तुम संग - ये अल्हड लडकपन जीना , कभी सुलझाना ना चाहूं - वो मासूम सी उलझन जीना ! बीत ना मन का मौसम जाए - चाहूं समय यहीं थम जाए ; हों अटल ये पल -प्रणय के साथी - भय है, टूट ना ये भ्रम जाए संबल बन गया जीवन का - तुम संग ये नाता पावन जीना ! बांधूं अमर प्रीत- बंध मन के तुम सं

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भारत में उत्पादोंके सकल उत्पादनका 40 प्रतिशत लघुउद्योगों द्वारा आपूर्ति कीजाती है| यह भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाताहै। 30 अगस्त 2000 को भारतीय सरकार ने छोटे पैमाने पर उद्योग का समर्थन करन

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लापरवाही केके के चेहरे से और हाव भाव से झलकती रहती थी. बाल अगर पंखे की हवा में तितर बितर हो गए तो हो गए केके ने कंघी नहीं करनी है. अगर किसी दिन एक जूते की लेस खुली रह गई तो रह गई कसनी नहीं है. कई बार बैंक में काम करते करते केके जूते उतार देता और फाइल लेकर हॉल के दूसरे कोन

तड़के सुबह से ही रिश्तेदारों का आगमन हो रहा था.आज निशा की माँ कमला की पुण्यतिथि थी. फैक्ट्री के मुख्यद्वार से लेकर अंदर तक सजावट की गई थी.कुछ समय पश्चात मूर्ति का कमला के पति,महेश के हाथो अनावरण किया गया.कमला की मूर्ति को सोने के जेवरों से सजाया गया था.एकत्र हुए रिश्तेदार समाज के लोग मूर्ति देख विस्म

झिनकू भैया कल शाम को टघरते टघरते आये और बैठक में आसन जमा कर बैठ गए। पूछ लिया, आज शाम को कैसे पधरना हुआ भैया, तो बोले आज नए वर्ष का आगमन है, आधी रात तक जागना ही था सो इधर ही आ गया। बच्चे सब टी.वी.में समाएं हैं, नाच- गाना और चैनलों की भरमार है भाई। समाचार वाले चैनल भी खूब थिरक रहें है पर एक बात बड़ी अ

इस जहां में.. अकेले ही आना है अकेले ही जाना है, किस बात की उम्मीदें किस बात का फसाना है. कितने राज इस जहां में किसी ने नहीं जाना है , बस अपने पीछे कुछ निशान छोड़कर जाना है. .. नरेन्द्र जानी (भिलाई) 🚥 लघु

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