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वेद

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*‼️जय श्रीमन्नारायण‼️*🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞 *‼️गुरु ही सफलता का स्रोत ‼️**भाग ८:-------*🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺🌷*गतांक से आगे:----**ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहिं न दूसरि बात।**कौड़ी लागि लोभबस करहि बिप्र गुर घात।।'*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹*अर्थात:-*(स्त्री-पुरुष ब्रह्मज्ञान के सिवा दूसरी बात ही नहीं कहते और

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ब्राह्मण ग्रंथ ही वेद के सर्वाधिक निकट तथा उसे समझने के आधार ग्रंथ है।ऐतरेय ब्राह्मण सभी ब्राह्मण ग्रंथों में पुराना व जटिल ग्रंथ है।ब्राह्मण ग्रंथों के मिथ्या अर्थों के कारण संसार में पशुबलि नरबलि मांसाहार नशा आदि पापों का उदय हुआ और इन पापों के लिए वेदादि शास्त्रों

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हंस के समान गुणग्राहक बनें (Hans Ke samaan gunagraahak banen)इस वीडियो में वेदामृत के अन्‍तर्गत वेदों का अमृत चखाते हुए यह बताने का प्रयास किया गया है कि हंस के समान गुणग्राहक बनें। इस वीडियो में ऋग्‍वेद के पहले मंडल के पैंसठवें सूक्‍त के नौवें मन्‍त्र की चर्चा की गई है।

loading...केवल वेद ही मनुष्य को मनुष्य बनना सिखाते है, अन्य मजहबी किताबें मनुष्य को मनुष्य बनना नहीं सिखातीये हमारा कहना नहीं बल्कि ये कहना है मेरठ के बरवाला की बड़ी मस्जिद के पूर्व इमाम काजो अब उच्च पंडित महेन्द्र पाल आर्य के नाम से जाने जाते हैबता दें की महेन्द्र पाल आर्

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मित्रो बहुत कम लोग जानते है की हमारी बहुत सी धार्मिक किताबें,शास्त्र और इतिहास के साथ अंग्रेज़ो ने बहुत छेड़खानी करी है ! आपको सुन कर हैरानी होगी भारत मे एक मूल प्रति है मनुसमृति की जो हजारो वर्षो से आई है और एक मनुस्मृति अंग्रेज़ो ने लिखवाई है ! और अंग्रेज़ो ने इसको लिखवाने

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वेदों में परिवर्तन नही हो सकता है |(वेद की आंतरिक साक्षी के आधार पर )वेदों में परिवर्तन या क्षेपक नही हो सकता है इसकी आंतरिकसाक्षी स्वयम वेद देता है -" ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्यस्मिदेवा अधि विश्वे निषेदू: |यस्तन्न वेद किमचा करिष्यति य इत्तद्विदुस्त इमे समासते ||- ऋग्वेद १/

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यः सदाऽहरहर्जपति स वै ब्रह्मणो भवति स वै ब्रह्मणो भवति। सूर्याभिमुखो जप्त्वा  महाव्याधिभयात्प्रमुच्यते।  अलक्ष्मीर्नश्यति। अभक्ष्य-  भक्षणात्पूतो भवति। अगम्यागमनात्पूतो भवति।  पतितसंभाषणात्पूतो भवति। असत्संभाषणात्पूतो भवति।  मध्याह्ने सूर्याभिमुखः पठेत्।  सद्योत्पन्न्पंचमहापातकात्प्रमुच्यते। सैषां स

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सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। सूर्याद्वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते। सूर्याद्यज्ञः  पर्जन्योऽन्नमात्मा।।3।।  सूर्यदेव समस्त जड़ और चेतन जगत् की आत्मा हैं। सूर्य से सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है। सूर्य से ही यज्ञ, पर्जन्य, अन्न एवं आत्मा(चेतना) का  प्रादुर्भाव  होता  है।  नमस्त आदित्य। त्वमेव प्रत्यक

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    ॐ भूर्भुवः सुवः। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमिहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।।2।।    जो प्रणव रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भूः, भुवः, स्वः रूप त्रिलोक में संव्याप्त है। समस्त सृष्टि के उत्पादन करने  वाले उन  सवितादेव  के सर्वोत्तम  तेज का  हम ध्यान करते हैं, जो(वे सविता देवता)हमारी बुद्धियों

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    सूर्योपनिषद अथर्ववेदीय परम्परा से संबंध रखता है। इस उपनिषद में आठ श्लोकों में ब्रह्मा और सूर्य की अभिन्नता वर्णित है और बाद में  सूर्य  व  आत्मा  की अभिन्नता प्रतिपादित की गई है। इस उपनिषद के पाठ के लिए हस्त नक्षत्र स्थित सूर्य का समय अर्थात् आश्विन मास सर्वोत्तम माना गया है।  इसके पाठ  से व्यक्

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हिंदु वेदों को मान्यता देते हैं और वेदों में विज्ञान बताया गया है । केवल सौ वर्षों में पृथ्वीको नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लानेवाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत प्रगतिशील एवं एक भी समाज विघातक शोध न करने वाला प्राचीन ‘हिंदु विज्ञान’ था ।पूर्वकाल के शोधकर्ता हिंदु ऋषियों की बुद्धि की विशालता दे

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