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वेदनासात

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बेड़ियों ने रूप बदलेरख दिया तन को सजाकरवो कली मासूम सी जोदेखती सब मुस्कुराकर।शूल बोए जा रहे थेरीतियों की आड़ में जबखेल सा लगता उसे थाजानती सच ये भला कबछिन रहा बचपन उसी कापड़ रहीं थीं सात भाँवर।।छूटता घर आँगना अबनयन से नदियाँ बहीं फिरहाथ में गुड़िया लिए थीबंधनों से अब गई घिरआज नन्हें पग दिखाएँघाव सा

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