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शिवदत्त

hindi articles, stories and books related to Shivdatt


ज़िन्दगी है सीखेगा तू गलती हजार करकिसने कहा था लेकिन पत्थर से प्यार कर |पत्थर से प्यार करके पत्थर न तू हो जानापथरा न जाये आँखे पत्थर का इन्तेजार कर |ख़्वाब में भी होता उसकी जुल्फों का सितममजनूं बना ले खुद को पत्थर से मार कर |सिकंदर बन निकला था दुनिया को जीतनेपत्थर सा जम गया है पत्थर से हार कर |मुकद

जब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैंकितना कुछ बदल जाता हैसारी दुनिया एक बंद कमरे में सिमिट जाता हैसारी संसार कितना छोटा हो जाता हैमैं देख पता हूँ, धरती के सभी छोरदेख पाता हूँ , आसमान के पारछू पाता हूँ, चाँद तारों को मैंमहसूस करता हूँ बादलो की नमीनहीं बाकी कुछ अब जिसकी हो कमीजब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं

जिंदगी बिछड़ी हो तुम तन्हा मुझको छोड़ कर आज मैं बेबस खड़ा हूँ, खुदखुशी के मोड़ पर || जुगनुओं तुम चले आओ, चाहें जहाँ कही भी हो शायद कोई रास्ता

जबसे तुम गये हो लगता है की जैसे हर कोई मुझसे रूठ गया है हर रात जो बिस्तर मेरा इंतेजार करता था, जो दिन भर की थकान को ऐसे पी जाता था जैसे की मंथन के बाद विष को पी लिया भोले नाथ नेवो तकिया जो मेरी गर्दन को सहला लेता था जैसे की ममता की गोदवो चादर जो छिपा लेती थी मुझको बाहर की दुनिया सेआजकल ये सब नाराज़

कब तक चलेगा काम खुद को जोड़ जाड केहर रात रख देता हूँ मैं, खुद को तोड़ ताड़ के ||तन्हाइयों में भी वो मुझे तन्हा नहीं होने देता जाऊं भी तो कहाँ मैं खुद को छोड़ छाड़ के ||हर बार जादू उस ख़त का बढ़ता जाता हैजिसको रखा है हिफ़ाजत से मोड़ माड़ के ||वैसे ये भी कुछ नुक़सान का सौदा तो नहींसँ

कुछ फायदा नहींमैं सोचता हूँ, खुद को समझाऊँ बैठ कर एकदिनमगर, कुछ फायदा नहीं ||तुम क्या हो, हकीकत हो या ख़्वाब होकिसी दिन फुर्सत से सोचेंगे, अभी कुछ फायदा नहीं ||कभी छिपते है कभी निकल आते है, कितने मासूम है ये मेरे आँशुमैंने कभी पूछा नहीं किसके लिए गिर रहे हो तुमक्योकि कुछ फायदा नहींतुम पूछती मुझसे तो

कवि: शिवदत्त श्रोत्रियतुम्हारे वास्ते मैंने भी बनाया था एक मंदिरजो तुम आती तो कोई गज़ब नहीं होता ||मन्दिर मस्ज़िद गुरद्वारे हर जगह झलकते हैबेचारे आंशुओं का कोई मजहब नहीं होता ||तुम्हारे शहर का मिज़ाज़ कितना अज़ीज़ थाहम दोनों बहकते कुछ अजब नहीं होता ||जिनके ज़िक्र में कभी गुजर जाते थे मौसमउनका चर्चा भी अब ह

सागर कब सीमित होगाफिर से वो जीवित होगाआग जलेगी जब उसके अंदरप्रकाश फिर अपरिमित होगा ||सूरज से आँख मिलाएगाकब तक झूमेगा रातों में ?कब नीर बहेगा आँखों में ?छिपा कहाँ आक्रोश रहेगादेखो कब तक खामोश रहेगाज्वार किसी दिन उमड़ेगा सीमाएं सारी तोड़ेगावो सच तुमको बतलायेगाबातों से आग लगायेगाएक धनुष बनेगा बातों काबात

कभी सोचता हूँ किकभी सोचता हूँ किजिंदगी की हर साँस जिसके नाम लिख दूँवो नाम इतना गुमनाम सा क्यों है ?कभी सोचता हूँ किहर दर्द हर शिकन में, हर ख़ुशी हर जलन मेंहर वादे-ए-जिंदगी में, हर हिज्र-ए -वहन मेंजोड़ दूँ जिसका नाम, इतना गुमनाम सा क्यों है ?कभी सोचता हूँ किसुबह है, खुली है अभी शायद आँखें मेरीलगता ह

रौशनी में खो गयी कुछ बात जिस गली में वो चाँद ढूढ़ने गया जिस रात उस गली में || आज झगड़ रहे है आपस में कुछ लुटेरे कुछ जोगी गुजरे थे एक साथ उस गली में || कुछ चिरागो ने जहाँ अपनी रौशनी खो दी क्यों ढूढ़ता है पागल कयनात उस गली में || मौसम बदलते होंगे तुम्हारे शहर में लेकिन रह

फूलो के इम्तिहान का कवि: शिवदत्त श्रोत्रियमंदिर में काटों ने अपनी जगह बना लीवक़्त आ गया है फूलो के इम्तिहान का ||सावन में भीगना कहाँ जुल्फों से खेलना बारिश में जलता घर किसी किसान का ||हालात बदलने की कल बात करता थालापता है पता आज उसके मकान का ||निगाह उठी आज तो महसू

रेल से अजब निराली हैइस काया की रेल - रेल से अजब निराली है|ज्ञान, धरम के पहिए लागे,कर्म का इंजन लगा है आंगे,पाप-पुण्य की दिशा मे भागे,२४ घड़ी ये खुद है जागे,शुरु हुआ है सफ़र अभी ये गाड़ी खाली है||इस काया की रेल ............एक राह है रेल ने जानाजिसको सबने जीवन मानाहर स्टेशन खड़ी ट्रेन हैअंदर आओ जिसको

शहर की भीड़ भाड़ से निकल कर सुनसान गलियों से गुजर कर एक चमकता सा भवन जहाँ से गुजरते है, अनगिनत शहर | एक प्लेटफार्म है , जो हमेशा ही चलता रहता है फिर भी वहीं है कितने वर्षो से | न जाने कितनो की मंजिल है य

शाम को आने मे थोड़ी देरीहो गयी उसकोघर का माहौल बदल चुकाथा एकदमवो सहमी हुई सी डरी डरीआती है आँगन मेहर चेहरे पर देखती हैकई सवालसुबह का खुशनुमा माहौलधधक रहा था अबउसके लिए बर्फ से कोमल हृदय मेदावानल सा लग रहा थावो खामोश रह कर सुनती है बहुत कुछऔर रोक लेती है नीर कोआँखो की दहलीज परपहुचती है अपने कमरे मेजह

अगर तुमने प्रेम नही कियातो कैसे जान पाओगे मुझकोकिसी को जी भरकर नही चाहाकिसी के लिए नही बहायाआँखों से नीर रात भरकिसी के लिए अपना तकिया नहीभिगोया कभीनही रही सीलन तुम्हारे कमरेमे अगर कभीतो कैसे जान पाओगे मुझको ||हृदय के अंतः पटल सेअगर नही उठी कभी तरंगेनही बिताई रात अगरचाँद और तारो के साथनही सुनी कभी न

जब भी भटकता हूँ किसी की तलाश मेंथक कर पहुच जाता हूँ तुम्हारे पास मेंतुम भी भटकती हो किसी की तलाश मेंठहर जाती हो आकर के मेरे पास मेंहर दिन भटकते रहे चाहे इस दुनियाँ मेंमिलते रहे आपस में दूसरो की तलाश में ||

मिले नज़र फिर झुके नज़र, कोई इशारा तो होयो ही सही जीने का मगर, कोई सहारा तो हो ||स्कूल दफ़्तर परिवार सबको हिस्सा दे दियाजिसको अपना कह सके, कोई हमारा तो हो ||उलझ गये है भँवर मे और उलझे ही जा रहेकोई राह नयी निकले, कोई किनारा तो हो ||टूटे हुए सितारो से माँगते है सब फरियादेंकुछ हम भी मांग ले, कोई सितारा

अच्छा लगता हैकवि: शिवदत्त श्रोत्रियकभी-कभी खुद से बातें करना अच्छा लगता हैचलते चलते फिर योहीं ठहरना अच्छा लगता है ||जानता हूँ अब खिड़की पर तुम दिखोगी नहींफिर भी तेरी गली से गुजरना अच्छा लगता है ||शाख पर रहेगा तो कुछ दिन खिलेगा तू गुलतेरा टूटकर खुशबू में बिखरना अच्छा लगता है ||आईने तेरी जद से गुजरे हु

भारत दिखलाने आया हूँरंग रूप कई वेष यहाँ पररहते है कई देश यहाँ परकोई तिलक लगाकर चलताकोई टोपी सजा के चलताकोई हाथ मिलाने वालाकोई गले लगाकर मिलताकितने तौर-तरीके, सबसे मिलवाने आया हूँक्या तुम हो तैयार? भारत दिखलाने आया हूँएक कहे मंदिर में रब हैदूजा कहे खुदा में सब हैतीजा कहे चलो गुरुद्वाराचौथा कहे कहाँ औ

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मैंने एक ख्वाब देखा था, तुम्हारी आँखों मेंहक़ीक़त बन जाये मगर ये हो न सका ||एक कश्ती ले उतरेंगे समुन्दर की बाहों मेंकोई मोड़ न होगा फिर अपनी राहों मेंनीला आसमां होगा जिसकी छत बनाएंगेसराय एक ही होगी ठहर जायेंगे निगाहों मेंएक लहर उठाएँगी एक लहर गिराएगीगिरेंगे उठेंगे मगर

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