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शोषण

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ज्ञानशंकर को बनारस आये दो सप्ताह से अधिक बीत चुके थे। संगीत-परिषद् समाप्त हो चुकी थी और अभी सामयिक पत्रों में उस पर वाद-विवाद हो रहा था। यद्यपि अस्वस्थ होने के कारण राय साहब उसमें उत्साह के साथ भाग न

महाशय ज्ञानशंकर का धर्मानुराग इतना बढ़ा कि सांसारिक बातों से उन्हें अरुचि सी होने लगी, दुनिया से जी उचाट हो गया। वह अब भी रियासत का प्रबन्ध उतने ही परिश्रम और उत्साह से करते थे, लेकिन अब सख्ती की जगह

प्रातःकाल ज्योंही मनोहर की आत्महत्या का समाचार विदित हुआ, जेल में हाहाकार मच गया। जेल के दारोगा, अमले, सिपाही, पहरेदार-सब के हाथों के तोते उड़ गये। जरा देर में पुलिस को खबर मिली, तुरन्त छोटे-बड़े अधिक

नारी का जीवन या फिर एक व्यथा ,,? ,व्यथा ही तो है नारी का जीवन ,, जिस दिन से माँ के गर्भ में अस्तित्वमान होती है माँ - बाप ,परिवार सबका मन इस बात से व्यथित कि क्या किया जाए ,इसे दुनिया में लाया जाए या फिर इस अंकुरण को गर्भ में ही कुचल दिया जाए ,,, यहाँ पर दो ही बातें होत

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाये।आज ऐसा बहुत से देशवासी अपनी वाल पर पोस्ट करेंगे और बोलेंगे और . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . . . . .फिर से लग जायेंगे अपने - अपने दैनिक कार्यो में.... निवेदन है...... सभी से की गणतंत्र दिवस रोज मनाये और देश की उन्नति में प

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