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श्रृंगार

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मैं फूल हूं गुलाब का प्रेम के इज़हार का, प्रेमिका के बालों में, सजकर इठलाता हूं, शहीदों की समाधि पर, चढ़ गर्वित हो जाता हूं, प्रेम का इज़हार, मेरा दस्तूर है, हर हाल में खुश रहना, मेरा जुनून है, किसी क

तुम ह्रदय के कुंज में मुझको सदा भाया करो l कुछ न हो फिर भी हमारे स्वप्न में आया करो ll रेत के पथ चल रहे हैं, मैं अभी तो रिक्त हूँ  l तुम रसों के भाग्य हो और मैं कहां अभिसिक्त हूँ?  पुष्प सी कुसुमित

दिल के एक कोने में, छुपी थी मासूम सी ख्वाहिश, जिसे चाहा है, दिल ने मेरे, जिसे पूजा है हृदय ने मेरे, वह सदा दिल में, ही बसेगा, इक ख़्वाब के जैसे, ख्वाबों की ताबीर बन, मेरी धड़कन में समाएगा, मेरे ख्वाबो

जब मन वीणा के तार , झंकृत हो जाएं, तब प्यार का मौसम, दिल को छू लेने को मचले, तब होंठों पर, रहस्यमई मुस्कान, आ जाए, मन के बजते, वीणा की मधुरिम, ताने प्यार के, नगमे गाएं, प्रेम गीत के, वह स्वर्णिम पल, म

आ गया होली का त्यौहार l  है बसंत का मौसम आया, मादक रूप खिले हैं l कलियों पर भौंरे मंडराये, उनके ह्रदय मिले हैं ll रंग, अबीर, ग़ुलाल उड़ाएं, मस्ती में सब झूमें l फगुआ गाये कोयल सुर में, मगन-मगन सब घूमें

मैं निकटतम प्रेम का अधिकार पाना चाहता हूँ l होंठ व्याकुल शब्द के स्वीकार पाना चाहता हूँ ll चित्र जो तुमने बनाये, वो हमारे मित्र हैं l शब्द जो तुमने सजाये, वो हमारे चित्र हैं ll तुम गगन के ह्रदय पर,

विधु गगन में, सौम्य तन-मन प्रणय शीतल सार है l कालिमा काजल विभा-तन श्वेत रस मय  धार है ll हो गया उद्विग्न अविरल मन विकल बिन प्रेयसी के l व्यग्र अलकें चंद्र आभा मन पुलक सँग श्रेयसी के ll ज्यों    गगन  

क्या रहस्य है समझाते? रजनी का आंचल है भीगा, संध्या की आँखें हैं नम l धरा विकल है, गगन वियोगी, किंचित मन में हतप्रभ हम ll नयनों की भाषा में खोकर, छिपकर हमको बहलाते l क्या रहस्य है समझाते? निकट प्रलय भ

जब तुम गए थे यह कहकर , फिर लौटकर आओगे, उस दिन से मैंने कभी, अपने मन के दरवाजे बंद नहीं किए, इस आस में पता नहीं तुम कब लौट आओ, न तुम आए न तुम्हारी कोई ख़बर आई, फिर भी मैं इंतज़ार करूंगी, तुम्हारे आने क

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मेरा गाँव कहीं खो गया है, अब शहर जैसा हो रहा है। कच्चे घरों की जगह अब, पक्के मकानों ने ले ली है। मिट्टी की सोंधी खुशबू अब, सीमेंट ने खाली है। कुएँ के पनघट की जगह, घर घर नल लग गए हैं। बुझ जाती है

रिश्ते नाते यारी सब निकले कारोबारी सब उनके घर में 4 बेटियां फिर भी उन्हें दुलारी सब राजनीत की माचिस देखो देतीं है चिंगारी सब जाने किसकी नजर लगी है सूखीं हैं फुलवारी  सब जो दुनिया का चाल चलन

बाहर से शर्मिला है तब तो फिर जहरीला है चल धरती का रंग बता अंबर नीला नीला है उतने तो हम भूले बैठे जो तेरा टंडीला है तेरा पर्वत है तुझे मुबारक अपना खुद का टीला है राजनीत की गर्म हवा है प्रेम

पहले जैसे गांव नहीं हैं । न पनघट पर गोरी । ना सखियों संग हंसी ठिठोली, ना अपने हमजोली, पहले गांव का पनघट, चहका करता। होती मन की बातें, जब बाबुल  रिश्ता देखें, तब पनघट पर बने बटोही, पिया देखने आते,

हम दोनों है इस दुनिया में एक-दूसरे क के लिए।हम हैं सबसे अलग और अनौखे,इस दुनिया के लिए।।दिल की दुनिया ने हमको एक बनाया।वह दिन था जब अनजान राहों को एक बनाया।।हम राही थे अलग-2 राह के,थी अल

मैं लोगों से डरती रही, अपने में सिमटती रही !! लोग क्या कहेंगे यह सोचती रही !! कभी खुद को देखा ही नहीं !! कभी खुद को चाहा ही नहीं है !! संस्कारों की बेड़ियों में जकड़ी रही !! होंठों की हंसी छुपाती रही

शीर्षक--छलकते मोतीआँखों से छलकते मोती प्यार से, बहे तो मोती नजर आता है।दर्द में आँखों से छलकते मोती बहे तो,आँसू नजर आते हैं। निकलते तो आँखों से छलक मोती,बस देखने में फर्क होता है। किसी

माँ बाप ने जन्म दिया बेटे कोलगी अंचल में सुलझाने माँ बेटे कोगीले में सोकर सूखे में सुलाती माँ बेटे कोपेट नहीं भरा होगा फिर पेट भरा माँ बेटे काखुद के तन पर कपडे नहीं लेकिन ढाका माँ बेटे कालगी संजोने सप

दीवाना अब मै दीवाना हो गयाइस दुनिया को त्याग सब कुछ त्यागाअब तो ये बस ख्वाबों का दीवाना हो गयादेख कर सारा खामयाजा कुछ हो गयाबस हो चूका अब ये "राहुल दीवाना" हो गयासांसों में छिपाकर यादों में लाकरबीते ल

कही भी मै रहू बसमुझे तेरा मुखड़ा नजर अाता हैसोचु मै क्या बसइसे सोचने से होता है क्याजहा कही भी रहू बसतेरी याद मुझे बुलाती हैजब भी तुम्हे सोचु बस तेरा चेहरा सामने आ जाता हैकही पर भी मै चलु बसतेरी य

नशीली आंखों में एक तस्वीर बसा रखीं है!! उसकी यादें दिल में छुपा रखीं है !! नशींली आंखों को जब तुम्हारे लबों ने छूआ था!! वह पल आज भी धड़कन में बसा रखा है !! जिन नशींली आंखों में कभी तुम डूबे थे !! जुल्

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