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संस्कार

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कितने रावण मारे हमने, कितने हर वर्ष जलाए।फिर भी छुपे मुखौटों में, रावण पहचान न पाए।।...उस रावण ने तो फिर भी, मर्यादा कभी न तोड़ी।कलयुग के रावण ऐसे, दुधमुंही तलक ना छोड़ी।।...ये चरित्र के हीन,मानसिक रो

"किसी की दौलत, शोहरत या तालीम उसे बड़ा नहीं बनाती...  आप की सच्चाई, विनम्रता और उदारता आप को बड़ा बनाती है।"  {14}    "पेड़ को नींद ही नहीं आती तब तक। आखिरी चिड़िया घर नहीं आती जब तक।"   {15}  

अपूर्व के मित्र मजाक करते, “तुमने एम. एस-सी. पास कर लिया, लेकिन तुम्हारे सिर पर इतनी लम्बी चोटी है। क्या चोटी के द्वारा दिमाग में बिजली की तरंगें आती जाती रहती हैं?” अपूर्व उत्तर देता, “एम. एस-सी. की

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*इस सृष्टि की रचना परमपिता परमात्मा ने बहुत ही आनंदित होकर किया है | अनेक बार सृष्टि करने के बाद नर नारी के जोड़े को उत्पन्न करके ब्रह्मा जी ने मैथुनी सृष्टि की आधारशिला रखी | इस समस्त सृष्टि का मूल नारी को कहा गया है ऐसा इसलिए क्योंकि नर नारी के जोड़े को उत्पन्न करने के पहले ब्रह्मा जी ने कई बार मा

📿📿📿📿📿📿📿📿📿 *जय श्रीमन्नारायण*🌹☘🌹☘🌹☘🌹☘🌹 *श्री राधे कृपा हि सर्वस्वम* 🌲🌳🌲🌳🌲🌳🌲🌳🌲 *सनातन संस्कृति एवं त्योहार* समस्त मित्रों एवं श्रेष्ठ जनों को दीपावली गोवर्धन पूजा यम द्वितीय की हार्दिक शुभकामनाएं यह पावन पंच पर्व जन-जन में ज्ञान अन्न धन से परिपूर्ण करें यही कामना है आज पा

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*इस संसार में मानव जीवन प्राप्त करने के बाद मनुष्य के विकास एवं पतन में उसके आचरण का महत्वपूर्ण योगदान होता है | मनुष्य का आचरण जिस प्रकार होता है उसी के अनुसार वह पूज्यनीय व निंदनीय बनता है | मनुष्य को संस्कार मां के गर्भ से ही मिलना प्रारंभ हो जाते हैं | हमारे महापुरुषों एवं आधुनिक वैज्ञानिकों दो

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*सृष्टि के प्रारम्भ में जब ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारम्भ की तो अनेकों औषधियों , वनस्पतियों के साथ अनेकानेक जीव सृजित किये इन्हीं जीवों में मनुष्य भी था | देवता की कृपा से मनुष्य धरती पर आया | आदिकाल से ही देवता और मनुष्य का अटूट सम्बन्ध रहा है | पहले देवता ने मनुष्य की रचना की बाद में मनुष्य ने द

अच्छा लग रहा है न आज ऐसे सड़क के किनारे बैठे हुए, इस इंतजार में कि क्या हुआ जो बहु ने निकाल दिया घर से,बेटा तो हमारा है न ,वो हमें लेने जरूर आएगा ।अरे याद करो भाग्यवान आज से 40 साल पहले की बात को मेरे लाख मना करने के बावजूद तुमने मेरी विधवा माँ पर न जाने क्या क्या इल्ज़ाम लगा कर घर से निकाला था। कितनी

चोर की परिभाषा ?डॉ शोभा भारद्वाजएक प्रसिद्ध चैनल में गरमा गर्म बहस चल रही थी सभी उत्साहित थे ‘भारत सरकार की कूटनीतिक विजय’ पाकिस्तानी आतंकी मसूर अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया गया चीन ने अपना वीटो वापिस ले लिया |बीच –बीच में नारे लगाये जा रहे थे है हरेक उत्साहित था भारत की कूटनीतिक विजय बहस खत्म

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*सनातन धर्म में मनुष्य के जीवन में संस्कारों का बहुत महत्त्व है | हमारे ऋषियों ने सम्पूर्ण मानव जीवन में सोलह संस्कारों का विधान बताया है | सभी संस्कार अपना विशिष्ट महत्त्व रखते हैं , इन्हीं में से एक है :- यज्ञोपवीत संस्कार ! जिसे "उपनयन" या "जनेऊ संस्कार" भी कहा जाता है | ऐसा माना गया है कि मनुष्य

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जन्म से पुनर्जन्म – हम बात कर रहेहैं सीमन्तोन्नयन संस्कार की - आज की भाषा में जिसे “बेबी शावर” कहा जाता है | यह संस्कार भी गर्भ संस्कारों का एक महत्त्वपूर्ण अंग है | पारम्परिक रूप से ज्योतिषीय गणनाओं द्वारा शुभ मुहूर्त निश्चित करके उसमुहूर्त में यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था | इस संस्कार

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जन्म से पुनर्जन्म – बात चल रही थीगर्भ संस्कारों की... उसे ही आगे बढाते हैं...गर्भाधान – आत्मा का पुनर्जन्म – एकशरीर को त्यागने के बाद अपनी इच्छानुसार आत्मा अन्य शरीर में प्रविष्ट होकर नौ माहतक माता के गर्भ में निवास करने का बाद पुनः जन्म लेती है... एक नन्हे से शिशु केरूप

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जन्म से पुनर्जन्म –गर्भ संस्कारों में गर्भाधान संस्कार से अगले चरण पुंसवन संस्कार की चर्चा हम कररहे हैं | जैसा कि सभी जानते हैं, जन्म से पूर्व किये जाने वाले संस्कारों में पुंसवन संस्कार का विशेषमहत्त्व माना जाता है और यह गर्भ के तीसरे माह में ज्योतिषी से अच्छे शुभ मुहूर्

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जन्म से पुनर्जन्म –गर्भ संस्कार – पुंसवन संस्कार - हमारे मनीषियों ने अनुभव किया कि गर्भ धारण करनेके बाद सबसे पहली आवश्यकता होती है कि माता पिता के आहार-व्यवहार, चिन्तन और भाव सभी को उत्तम और सन्तुलित बनाने का प्रयासकिया जाए | और इसके लिए अनुकूल वातावरण बनाने की भी आवश्यक

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जन्म से पुनर्जन्म –गर्भाधान संस्कार की ही बात आगे बढाते हुए अब बात करते हैं गर्भ संस्कारों के अगलेचरण - पुंसवन संस्कार की | गर्भाधाननिर्विघ्न सम्पन्न हो गया, माता पिता दोनों ने स्वस्थ मन औरस्वस्थ शरीर से इस कार्य को सम्पन्न किया तो उसके तीन माह के बाद पुंसवन संस्कार कियेज

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जन्म से पुनर्जन्म - बातचल रही है गर्भाधान संस्कार की | यहसंस्कार न तो कोरा धार्मिक अनुष्ठान ही था और न ही काम वासना का प्रतीक था | यह तो एक बहुत ही पवित्र कर्म माना जाता था |उदाहरण के लिए शिव-पार्वती का मंगल मिलन काम वासना के कारण नहीं हुआ था | काम को तो शिव ने कब का जलाक

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जन्म सेपुनर्जन्म – बात चल रही है शिशु के जन्म से पूर्व के संस्कारों की | तो इसे ही आगे बढाते हैं...एक बातस्पष्ट कर दें, कि इसलेख की लेखिका यानी कि हम कोई वैद्य या डॉक्टर नहीं हैं,लेकिन वैदिक साहित्य के अध्येता – Vedic Scholar - अवश्य हैं, और ज्योतिष के ही समान आयुर्वेद भी

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गृहस्थ जीवनमें प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में गर्भाधान संस्कार का हीमहत्त्व है |क्योंकि गृहस्थ जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तान की उत्पत्ति है | अतः उत्तम सन्तान की कामना करने वाले माता पिता को गर्भाधान से पूर्वअपने तन और मन दोनों को पवित्र तथा स्वस्थ रखने

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जन्म से पुनर्जन्म – एकऐसी यात्रा – एक ऐसा चक्र जो निरन्तर गतिशील रहता है आरम्भ से अवसान और पुनः आरम्भसे पुनः अवसान के क्रम में – यही है भारतीय दर्शनों का सार जो निश्चित रूप से आशाऔर उत्साह से युक्त है – समस्त प्रकृति का यही तो नियम है | ये समस्त सूर्य चाँद तारकगण उदित होते हैं, इनका अवसान होता

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