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कुछ जरूरी काम से मुझे राजधानी दिल्ली आना पड़ा. दोपहर की कड़कती धुप के बीच ऑटो से दिलशाद गार्डेन मेट्रो स्टेशन की तरफ जा रहा था. सच बताऊ तो इस दौरान बशीर बद्र साहब की शायरी अचानक जुबां पर आ गई. सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत.दरअसल , जिस ऑटो पर मै बैठा

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