आलू ,मटर ,टमाटर में थी दोस्ती सच्ची और प्यारी साथ निभाते थे उनका धनिया और हरी मिर्च न्यारी धूमधाम से खेला करते गोभी - गाजर और फली भी प्याज भी साथ में आती थी दोस्त तो थी वो भी न्यारी कभ
लिखना भी तो, क्या लिखना है? कहना भी तो, क्या कहना है? खलिश है रहती, हर पल मन में, मिल भी ले तो, क्या कहना है? खत लिखता हूँ, लिख लेता हूँ, और उसे फिर, मोड़ माडकर, बक्शे में कहीं, रख दे
चल चार कदम हर बार यूँ ही, डगमगाया लौट आया। कभी कोशिश नहीं की, कभी थोड़ा चला, कभी बीच रस्ते से लौट आया। ठोकरों का डर कभी, कभी उनसे गिर जाने का, हर बार डरा, और डर के वापस आया। कभी मंजिल
एक दिन वह भी आएगा, जब सपनों का आकार होगा। वह सुख-शांति का सागर होगा, जो हमें अंतर्मन से आवाज़ देगा। एक दिन वह भी आएगा, जब समृद्धि की मिठास बिखरेगी। सभी दरियाओं को लहराएगा, अपने प्या
किसान है वो मेहनत की खाता है किसान है वो मेहनत की कठिनाई का सामना करता है, धूप, बर्फ, बारिश में भी अपने काम को निभाता है। खेतों में जो उनकी किल्लत है, वो कोई नहीं समझ सकता, हर दिन की
ढूंढा तुमको मैंने, यहाँ वहां न जाने कहाँ, कुछ लोगों से पूंछा, तेरे मिलने का ठिकाना, कुछ ठिकाने भी ढूंढे, जहाँ तुम मिला करते थे, जहाँ तुम मिला करते थे, वहां तुम मिले नहीं अरसो से, नए ठिकानों पर
कुछ अंदर है, कुछ बाहर है, कुछ मेरे भी, कुछ तेरे भी, कुछ यहाँ वहां, है बिखरा हुआ, कुछ कांच सा, टुटा हुआ कहीं, कुछ ताश सा, बिखरा हुआ कहीं, कुछ मातम सा, है छाया हुआ, कहीं हर्ष बिगुल, सा बजा
चला,रुका, फिर चला, यह शिलशिला यूँ ही चला, न चल सका, न रुक सका, ऐसे ही चलता रहा, कुछ शख्श मिले, कुछ कह गए, कुछ ध्यान दिया, कुछ नहीं दिया, थोड़ा सा सुना, और नहीं सुना, कुछ वक्त मिला, आर
कुछ चोट लगीं, कुछ जख्म मिले, कुछ आह सहीं, कुछ राह चला, कुछ दूर चला, फिर भटक गया, भटका ऐसा, फिर मिला नहीं, न रही मिली, न खुद से मिला, जिन्दा था भी, या न था, ऐसा भी कुछ, एहसास न था, म
किस्सा है अमरावती का, किस्सा कोई बरसों पुराना नहीं बल्कि हाल-फ़िलहाल का है | अमरावती जो 72-73 वर्ष की हैं | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्त
मनी-प्लांट (1) क्या कर रही हो दादी? इस पौधे को क्यों तोड़ रही हो? क्या दिक्कत हो रही है इनसे तुमको? बोलती क्यों नहीं दादी? अपने पोते के एक के बाद एक प्रश्नों को अनसुना कर मिथलेश कुमारी अपने काम में
“सुना है तुम छुआछूत की समस्या पर कटाक्ष करता हुआ कोई नाटक करने वाले हो इस बार अपने स्कूल में”, संतोष भईया ने मुझसे शाम को खेलते समय पूछा, “और उस नाटक की स्क्रिप्ट भी तुमने ही लिखी है, बहुत बढ़िया”।
अपने कम्प्यूटर के लिए मैं एक नया रंगीन प्रिंटर लाया था। घर में सबको बुला कर शेखी बघारते हुए बताया," ये बहुत अच्छी तकनीक से बना है और किसी भी चीज को हू-बहू प्रिंट कर देता है।" फिर मैंने सबको आदेश दिया
विमान में प्रवेश की उद्घोषणा के साथ रमा एक झटके से उठ बैठी और लपक कर लाइन में लग गयी। वहीं सुरेश आराम से अपने लैपटॉप पर काम करता रहा। दोनों दम्पतिअक्सर हवाई जहाज से यात्रा करते थे और हर बार ऐसा ही घटन
अजय की बेटी की शादी में जाने के लिए जब सब तैयार हो रहे थे तो मैंने इस काम के लिए ले जाने वाले एक लिफाफे को निकाला और सोचा इसमें कितनी रकम डालूं। आम तौर पर मेरी पत्नी इस जिम्मेदारी को निभाती थी और इस
नवीन ने नयी कार क्या खरीदी बधाई देने वालों का ताँता सा लग गया। हर कोई आकर उसे नयी कार की बधायी देता ,मिठाई मांगता और फिर लगभग एक जैसे सवालों की झड़ी लगा देता,"कितने की ली? क्या एवरेज देती है? साथ में
ढूँढने वाला सितारों की गुज़रगाहों का अपने अफ़कार फ़िक्र का बहुवचन/चिंताएँ की दुनिया में सफ़र कर न सका अपनी हिकमत दुस्साहस के ख़मो-पेच उलझनों में उलझा ऐसे आज तक फ़ैसला-ए-नफा-ओ-ज़रर लाभ-हानि का नि
जब बस में सफर कर रहा था...और ड्राइवर के बगल में खड़ा था...इतने में एक महिला ने ड्राइवर से बोला की "भैया" मुझे यहीं उतार दो...ड्राइवर ने उसे उतार दिया और फिर बस चलाते हुए मुझसे कहने लगा की दिनेश जी एक ब
इक वलवला-ए-ताज़ा नया भाव दिया मैंने दिलों को लाहौर से ता-ख़ाके-बुख़ारा-ओ-समरक़ंद बुख़ारा और समरकंद की भूमि तक लेकिन मुझे पैदा किया उस देस में तूने जिस देस के बन्दे हैं ग़ुलामी पे रज़ाम
जहाने-ताज़ा नये संसार की अफ़कारे-ताज़ा ताज़ा चिंतन से है नमूद कि संगो-ख़िश्त ईंट-पत्थर से होते नहीं जहाँ पैदा ख़ुदी में डूबने वालों के अज़्मो-हिम्मत हिम्मत और इरादे ने इस आबे-