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स्पंदन

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इस पिजरे में कितना सकूँ हैबाहर तो मुरझाए फूल बिक रहे हैकोई ले रहा गंध बनावटीभागमभाग है व्यर्थ हीएक जाल है;मायाजाल हैघर से बंधन तकबंधन से घर तकस्वतंत्रता का अहसास मात्र लिएकभी कह ना हुआ गुलाम हैंगुलामी की यही पहचान है।मर रहे रोज कुछ कहने में जी रहेसब फंसे हैंसब चक्र में पड़े हैंअंदर आने का रास्ता बड़ा

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