चला जा रहा हूँ अंजान से एक सफर में साथ न कोई साथी किसी मंजिल का एक साये के पीछे न जाने किसकी तलाश में एक चेहरा ढूंढता हूँ न जाने किसकी आस में कभी कोई मिलता है तो ये सोंचता हूँ कि ये वही तो नहीं जिसका ये साया है इस अंजान से चेहरे ने ,न जाने किसका चेहरा पाया है क्यूँ नहीं समझ पाता ,मैं उसकी बातें इसी