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हवा

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मैं हवा हूँ सुनाती अपनी बातपानी की तरह मैं भी बहती थी मुफ़्तप्रदूषण का धुआँ बना कर उड़ाते रहे लोगरफ़्ता रफ़्ता घटती रही मैं रोज़अपने ही विनाश को बुलाते गये लोगजंगल उजाड़ेखेत खलिहान सब उजाड़ेपेड़ो की जगहईंट कांक्रीट के जंगल बनाते रहे रोज़ज़िंदगी और मौत दोनों में हूँ मैंतुम

हवा चली शीतल पवन आती थी।आँधी तूफान लाती थी।अब हवा मे बीमारी हैं।हवा अब वाइरस बन गई हैं।वह अब पेड़, गली से नहीं,लोगो के श्वास नली से निकलती हैं।पतझड़ अब पेड़ो मे नहीं,अब तो पतझड़ इंसानों मे दिखती हैं।कटा पेड़ न्यूज मे दिखता हैं।मरा इंसान कब्रुस्तान या समसान मे दिखता हैं।पेड़ की टहनियाँ सूख कर खाद बनती हैं।

रेत पर उकेरी गई आकृति,मेरा वजूद इतना सा ही कुछ समय का; कलाकार ने उकेरा बड़ी शिद्दत से,चित्रण कर दिया अपनी भावनाओं का।मैं बनी इतनी सुन्दर कि, मुझे मिटाने के लिए खड़े तैयार है दुश्मन;चलती हवा और लहरें पानी की,कर

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