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ग़ज़लकविता

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जब तुमको ही अब मेरा इंतज़ार नहीं हैमेरा दिल भी परेशान हो बेकरार नहीं हैबेडियां जब प्यार की टूटा करी हैं आजकोई किसी के हाथों में गिरफ्तार नहीं हैरुठों को मना लेना मुश्किल ना खास हैगैरों पर मगर कोई भी इख्तियार नहीं हैश्रध्दा बिना प्यार का कोई मोल ही नहींक्या इतना भी वो अब समझदार नहीं हैमाना मुहब्बतों

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मुहब्बत के मैंने इस जीवन में जो भी खेल खेले हैं सभी में हार पाई है और बस अब तो बैठे अकेले हैं दर्द सहने की शक्ति वक्त संग जब बढ़ती जाती है समझ लो ऐसे लोगों ने दिलों पर तीखे वार झेले हैंजानते हैं वो सब ये राज़ इश्क़ में कुछ नहीं मिलता गगरिया प्रेम की गैरों पे मगर वो फिर भी उड़ेले हैं ज़िन्दगी बीत जाती है

मुहब्बत जिन को होती है कभी रूठा नहीं करतेफक़त दुनिया की मर्ज़ी से हाथ छूटा नहीं करतेआईना धुंधला हो जाए छवि दिखला ही देता हैबिना पत्थर सी चोटों के ये भी टूटा नहीं करतेलाख कोशिश करो प्रेम तो किस्मत से मिलता हैइसे ताकत के बल पे नेक जन लूटा नहीं करतेबिखर सकते हैं सब मोती डोरी के टूट जाने पेमगर बस गिरने भर

मुहब्बत दिल में हो जिनके वो ही तो मान करते हैमिटा के जिस्मों की दूरी उनको एक जान करते हैंउम्मीदें मैंने पाली थी नाज़ बन माथे पे सज जाऊँमगर किस्मत के उलट फेरे मुझको हैरान करते हैमुहब्बत जिनको होती है वो कमियां भी छुपाते हैंमगर जो दिल नहीं रखते सब का अपमान करते हैमीठे बोल चिड़ियों के खुशी हर आंगन में

इन बंज़र आँखों में समंदर कल भी था और आज भी हैप्यास से मरना मेरा मुक़द्दर कल भी था और आज भी हैकोई इलाज-ए-ज़ख्म-ए-दिल वो ढूँढ न पाया आज तलकबेबस का बेबस चारागर कल भी था और आज भी हैउसी राह से कितने मुसाफ़िर मंज़िल तक जा पहुँचे, मगरउसी जगह

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