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ग़ज़ाल

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बुलाता है वो अपना पास पर ना आग बाकी हैमधुरता खो गई गीतों में अब ना राग बाकी हैतपते जेठ की गर्मी में वो सावन की उम्मीदेंकहाँ झूलेंगी ये सखियां कोई ना बाग़ बाकी हैघाव तो भर गया लेकिन उन्हें समझाऊं मैं कैसेसदा आँखों में चुभता है वो अब तक दाग बाकी हैबसंती रिश्तों के रंग अब यहाँ मन को नहीं रंगतेकहने को त

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अधिक पाने की चाहत में यहाँ थोड़ा भी खोया हैवही काटा है इंसा नें जो निज हाथों से बोया हैस्वप्न जब टूटते हैं आँखों में आंसू नही दिखतेकोई तो झांक कर देखे ये मनवा कितना रोया हैबुझा चेहरा थकी आँखें बातें बोझिल सी करता है गुमां होता है यूँ इंसान वो कब से ना सोया हैबड़ा मज़बूर है इंसा जुदा बाहर से दिखता है ज

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