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फ़ितरत

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आसाँ नहीं समझना हर बात आदमी के,कि हँसने पे हो जाते वारदात आदमी के।सीने में जल रहे है अगन दफ़न दफ़न से ,बुझे हैं ना कफ़न से अलात आदमी के?ईमां नहीं है जग पे ना खुद पे है भरोसा,रुके कहाँ रुके हैं सवालात आदमी के?दिन में हैं बेचैनी और रातों को उलझन,संभले नहीं संभलते हयात आदमी के।दो गज

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