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“गज़ल”क्या

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क़ाफ़िया ज़िंदा आ स्वर रदीफ़ हूँ मैं वज़्न -२१२२ २१२२ २१२अरकान-फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन“गज़ल”क्या बताऊँ क्यों नहीं सुनता हूँ मैंहर घड़ी हैवान से लड़ता हूँ मैंदेख वह ले जा रहा है आदमीदौड़ कर रोको उसे कहता हूँ मैं।।फूलकर कुप्पा हुआ सहकार पाकब उठेंगे हाथ बस तकता हूँ मैं।।राम आए थे ब

बह्र- २१२२ २१२२ २१२२ २ काफ़िया- अर रदीफ़- दिया मैंने“गज़ल”क्या लिखा क्योंकर लिखा क्या भर दिया मैंनेकुछ समझ आया नहीं क्या डर दिया मैंनेआज भी लेकर कलम कुछ सोचता हूँ मैंवो खड़ी जिस द्वार पर क्या घर दिया मैंने।।हो सके तो माफ़ करना इन गुनाहों कोजब हवा में तीर थी क्यों शर दिया मैंन

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