नियुक्ति-पत्र हाथ में लिए,
खिलखिलाती बेटी से
माँ ने पूछा-
अब क्या करोगी?
माँ!तुमने समाज की
सारी कुरीतियों, क्रूरताओं के सामने
एक कवच बन कर
मुझे जन्मा, पाला;
अब तुम्हारी शक्ति बनूँगी
ऐसा अप्रत्याशित उत्तर...
आलोक से भर गया
मन का कोना-कोना
सहसा ही मन
पीछे मुङकर देखने लगा-
वहाँ, जहाँ -
बरामदे में खड़े सभी परिजन,
नर शिशु का
रूदन सुनने को बेचैन थे
रुदन तो सुना
पर कन्या का
सबका उत्साह
दूध के झाग की तरह बैठ गया...
और ....
प्रसवपीड़ा से छटपटाता
मेरा जिस्म..
अभी स्थिर भी ना होने पाया था
कि एक नन्ही सी जान को
मेरी बगल में लेटा दिया गया
ओह, मेरी बिटिया!
मेरे स्त्रीत्व की पूर्णता!
लम्बी-लम्बी साँसें भरता
वह नन्हा सा जिस्म
मजबूती से बन्द
छोटी-छोटी मुट्ठियाँ
-----आज यही मुट्ठियाँ
सबल हो मेरे झुकते कन्धों को
सहारा देने को बढ़ आयी हैं
मेरी बच्ची आज समर्थ हो
मातृ-ऋण उतारने को
तत्पर हो गयी है..
मेरी जान!
तुझे तेरे कदमों में
तेरी अपनी जमीन और सिर पर
हौसलों का यह आसमान मुबारक हो।
-ममता गुप्ता