पूजनीय प्रभु हमारे, भाव उज्जवल कीजिये ।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ॥
वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें ।
हर्ष में हो मग्न सारे, शोक-सागर से तरें ॥
अश्व्मेधादिक रचायें, यज्ञ पर-उपकार को ।
धर्मं- मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ॥
नित्य श्रद्धा-भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहें ।
रोग-पीड़ित विश्व के, संताप सब हरतें रहें ॥
भावना मिट जाये मन से, पाप अत्याचार की ।
कामनाएं पूर्ण होवें, यज्ञ से नर-नारि की ॥
लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए ।
वायु जल सर्वत्र हों, शुभ गंध को धारण किये ॥
स्वार्थ-भाव मिटे हमारा, प्रेम-पथ विस्तार हो ।
'इदं न मम' का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो ॥
प्रेमरस में मग्न होकर, वंदना हम कर रहे ।
'नाथ' करुणारूप ! करुणा, आपकी सब पर रहे ॥