जब तुम गए थे यह कहकर ,
फिर लौटकर आओगे,
उस दिन से मैंने कभी,
अपने मन के दरवाजे बंद नहीं किए,
इस आस में पता नहीं तुम कब लौट आओ,
न तुम आए न तुम्हारी कोई ख़बर आई,
फिर भी मैं इंतज़ार करूंगी,
तुम्हारे आने का तुम आए तो ठीक,
नहीं आए तो फिर मेरे दिल के दरवाजे,
बंद हो जाएंगे तुम दस्तक देते रहना,
फिर कभी ना खुलेंगे तुम्हारे लिए,
हमें भी दर्द का अहसास होता है,
दर्द जब हद से ज्यादा बढ़ जाएगा,
तो हर जज्बातों से परे हो जाएगा।।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
31/3/2021