इंद्रधनुषके रंगों से रची ,प्रभु तुम्हारी सृष्टि रंगीन ,
धरा पर फैली हरियाली , मन को करती नित - नवीन।
नित सुबह सूर्य , हर जन को नयी उम्मीद दे जाता है ,
हर प्राणी के उर में आशा का भाव जगाता है।
कल - कल करती नदिया मदमस्त बहती जाती है ,
आयें कितनी भी बाधाएँ , न रुकने का संदेश दे जाती है।
शीश उठाये पर्वतराज महानता दिखलाता है ,
न झुके कभी भी , हर प्राणी - मात्र को समझाता है।
पक्षियोंका कलरव वातावरण आनंदित करता है ,
ख़ुश रहें हम सदा , ये सुनिश्चित करता है।
प्रभु तुम्हारी लीला का न कोई पार है ,
प्रभु तुम्हारी लीला , सदा अपरंपार है।
©अलका बलूनी पंत