ज़िन्दगी के खाली पड़े कैनवास पे,जब चाहे मैं चित्र उकेर दूं।
उस चित्र में जब चाहे मैं ,जिंदगी के उस कैनवास में रंग भर दूं।
ज़िन्दगी का वह खाली कैनवास,अब ना रहेगा हमेशा की तरह बेरंग।
पानी की लहरों की तरह,पहाड़ी झरने की तरह,अब इसमें रहेगा सदाबहार रंग।
ज़िन्दगी के इस कैनवास पे,अब ना रहेगा वीरान रेगिस्तानी चित्र।
क्योंकि इस कैनवास को भरने रंगों से,आ गए हैं मेरे सारे मित्र।
ज़िन्दगी के इस कैनवास पे अब,हरितिमा है चारों ओर छायी।
अब लहलहाएगी फुलवारी,जिंदगी को भी है यह उर्वरा भायी।
रंग गया यह कैनवास कई रंगों में, ले आया बहार इस बेजान जिंदगी में।
कई उतार चढ़ाव देखें इस जिंदगी ने,कई बार भरपाई की इसे समतल बनाने में।
यह रंगों भरा कैनवास कई बार , हुआ बेरंग अपनी ही गलतियों से।
ज़िन्दगी का यह कैनवास अब, भर दिया अपनों ने इसे अमिट रंगों से।