सुरम्य शान्ति के लिए, जमीन दो, जमीन दो,
महान् क्रान्ति के लिए, जमीन दो, जमीन दो ।
(1)
जमीन दो कि देश का अभाव दूर हो सके,
जमीन दो कि द्वेष का प्रमाद दूर हो सके,
जमीन दो कि भूमिहीन लोग काम पा सकें,
उठा कुदाल बाजुयों का जोर आजमा सकें,
महा विकास के लिए, जमीन दो, जमीन दो,
नए प्रकाश के लिए, जमीन दो, जमीन दो ।
(2)
जमीन दो, समाज से कड़ी पुकार आ रही,
जमीन दो कि एक मांग बारबार आ रही ।
जमीन मातृ-रुपिणी पुनीत है, पवित्र है,
जमीन, वारि, वायु का समान ही चरित्र है
पुनीत कर्म के लिए. जमीन दो, जमीन दो,
नवीन धर्म के लिए, जमीन दो, जमीन दो ।
(3)
जमीन चाहिए समाज के समत्व के लिए,
स्वराज्य के लिए, स्वदेश के महत्त्व के लिए ।
मनुष्यता के मान के लिए जमीन चाहिए,
बहुत दुखी किसान के लिए जमीन चाहिए ।
विपन्न, नि:स्व के लिए जमीन दो, जमीन दो,
क्षुधार्त्त विश्व के लिए जमीन दो, जमीन दो ।
(4)
जमीन दो कि शान्ति से नया समाज ला सकें,
जमीन दो कि राह विश्व को नई दिखा सकें,
जमीन दो कि प्रेम से समत्व-सिद्धि पा सकें,
जमीन दो कि दान से कृपाण को लजा सकें ।
सुरम्य शान्ति के लिए, जमीन दो, जमीन दो,
महान क्रान्ति के लिए, जमीन दो, जमीन दो ।
(पटना, 1953 ई.)