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कविता : स्त्री

10 अप्रैल 2022

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बाहर से जब थक कर घर के लोग आए 

तो हाल-चाल उनका पूछती हूं

किसी दिन कोई मेहमान आ जाएं

तो सेवा उसकी करती हूं 

बच्चें जब छोटी-छोटी बातों पर रूठ जाए 

तो मैं ही उनको मनाती हूं 

रात-रात भर जाग-जाग कर 

अक्सर उनको सुलाती हूं 

आंच अगर घर पर आएं 

तो मैं ही ढाल बनकर बचाती हूं 

मैं एक स्त्री हूं 

जीवन का हर कर्तव्य निभाती हूं 

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Ishika Choudhary की डायरी
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इस किताब में जिदंगी की हर चीज से जुड़ी कविताओं के बारे में लिखा गया है. किताब के अंदर पन्नों में लिखी गई कविताओं की भावनाओं के बारे में बताया गया है. फिर चाहे वो प्रकृति की भावना हो, स्त्री की भावना हो, अपने बचपन में बिताए हुए पलों की भावना हो, गांव की पुरानी यादों की भावना हो, हर एक चीज की भावना के बारे में बताया गया है.

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