सज सवंरके आती हैं जब वो
सखियों के संग में
लजाती लुभाती स्वयं में सकुचाती
हर क़दम हर आहट पे
रखती हैं ध्यान
कहीं कोई अनजाना रस्ता न रोक ले
कोई छू न ले उन
अनछुई कोमल कलियों को
सज सवंरके आती हैं जब वो
सखियों के संग में
लजाती लुभाती स्वयं में सकुचाती
हर क़दम हर आहट पे
रखती हैं ध्यान
कहीं कोई अनजाना रस्ता न रोक ले
कोई छू न ले उन
अनछुई कोमल कलियों को
दीक्षा जी , इस प्रेम भरी कविता के लिए आपको सौ में सौ अंक
धन्यवाद
एहसास से परिपूर्ण, अच्छा लिखती हैं आप।
धन्यवाद
रवि कुमार
14 जुलाई 2019क्या बात है ... दीक्षा जी ,,, बहुत खूब