ज़िदगी तूने क्या किया
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( जीवन की पाठशाला से )
जीने की बात न कर
लोग यहाँ दग़ा देते हैं।
जब सपने टूटते हैं
तब वो हँसा करते हैं।
कोई शिकवा नहीं,मालिक !
क्या दिया क्या नहीं तूने।
कली फूल बन के
अब यूँ ही झड़ने को है।
तेरी बगिया में हम
ऐसे क्यों तड़पा करते हैं ?
ऐ माली ! जरा देख
अब हम चलने को हैं ।
ज़िदगी तुझको तलाशा
हमने उन बाज़ारों में ।
जहाँ बनके फ़रिश्ते
वो क़त्ल किया करते हैं ।
इस दुनियाँ को नज़रों से
मेरी , हटा लो तुम भी।
नहीं जीने की तमन्ना
हाँ, अब हम चलते हैं।
जिन्हें अपना समझा
वे दर्द नया देते गये ।
ज़िंदगी तुझको संवारा
था, कभी अपने कर्मों से ।
पहचान अपनी भी थी
और लोग जला करते थें।
वह क़लम अपनी थी
वो ईमान अपना ही तो था ।
चंद बातों ने किये फिर
क्यों ये सितम हम पर ?
दाग दामन पर लगा
और धुल न सके उसको।
माँ, तेरे स्नेह में लुटा
क्या-क्या न गंवाया हमने ।
बना गुनाहों का देवता
ज़िन्दगी, तूने क्या किया ?
पर,ख़बरदार !सुन ले तू
यूँ मिट सकते नहीं हम भी।
जो तपा है कुंदन - सा
चमक जाती नहीं उसकी ।
- व्याकुल पथिक
यशोदा दिग्विजय अग्रवाल
08 सितम्बर 2019आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Shashi Gupta
08 सितम्बर 2019धन्यवाद दी
Shashi Gupta
08 सितम्बर 2019जी प्रणाम दी