🥀🥀🥀🥀गुलाब🥀🥀🥀🥀🥀
🥀🥀तेरी हीं अद्भुत रचना मैं हूँ🥀🥀
🥀खुशबू फैला कर मुरझा जाता हूँ🥀
🥀सिंचित करता वनमाली पर,🥀
🥀अनजाने में चुभ पीड़ा पहुँचाता हूँ🥀
🥀चाहा मगर, काँटों को छुपा नहीं पाता हूँ🥀
🥀🥀🥀डॉ. कवि कुमार निर्मल 🥀🥀🥀
🥀🥀🥀🥀गुलाब🥀🥀🥀🥀🥀
🥀🥀तेरी हीं अद्भुत रचना मैं हूँ🥀🥀
🥀खुशबू फैला कर मुरझा जाता हूँ🥀
🥀सिंचित करता वनमाली पर,🥀
🥀अनजाने में चुभ पीड़ा पहुँचाता हूँ🥀
🥀चाहा मगर, काँटों को छुपा नहीं पाता हूँ🥀
🥀🥀🥀डॉ. कवि कुमार निर्मल 🥀🥀🥀
अवतरण: 1:30 उपरान्ह, विजया नवमी (वृहष्पतिवार) १९५०, पड़रौना, उत्तर प्रदेश, भारतवर्तमान स्थाई आवास: बेतिया (पश्चिम चंपारण) बिहारभु. पु. चिकित्सा वरीय पदाधिकारीपश्चिम बंगाल व बिहार सरकार स्वास्थ्य सेवाएम (आगे पढ़िये ...)
शोभा भारद्वाज
28 सितम्बर 2019अति सुंदर भाव