अभी मुझे खिलते जाना है
नहीं
अभी है पूर्ण साधना, अभी मुझे बढ़ते जाना है |
जग
में नेह गन्ध फैलाते अभी मुझे खिलते जाना है ||
मैं प्रथम
किरण के रथ पर चढ़ निकली थी इस निर्जन पथ पर
ग्रह
नक्षत्रों पर छोड़ रही अपने पदचिह्नों को अविचल |
नहीं
प्रश्न दो चार दिवस का, मुझको बड़ी दूर जाना है
जग
में नेह गन्ध फैलाते अभी मुझे खिलते जाना है ||
है
ज्ञान मुझे इस पथ पर चल, जाना किस ओर मुझे अब है
इस
जग को साथ चलाने हित मन में प्रकाश भरना अब है |
दूजा
कोई मार्ग नहीं, बस इस पर ही चलते जाना है
जग
में नेह गन्ध फैलाते अभी मुझे खिलते जाना है ||
है
प्रश्न और आह्वान कहाँ, है आदि मध्य अवसान कहाँ
आँसू
की शत शत धारा में है स्नेहपूर्ण अनुदान कहाँ |
इन
तर्क कुतर्कों को तज कर, बस शान्ति मुझे पाते जाना है
जग
में नेह गन्ध फैलाते अभी मुझे खिलते जाना है ||
शिल्पा रोंघे
02 नवम्बर 2019बढ़िया
डॉ पूर्णिमा शर्मा
15 नवम्बर 2019जी धन्यवाद