बंद पिंजड़े से निकल जब पँक्षि
आजाद हो गगन पार जाता है।
मन की समस्त 'कुण्ठाओं' को
पिंजड़े में छोड़ वह आह्लादित
हो गुनगुनाते उड़ता जाता है।।
बँधनों से मुक्त हो- घुटन से निकस वह
मुक्त प्राणी बन अराध्य तक जाता है।।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बंद पिंजड़े से निकल जब पँक्षि
आजाद हो गगन पार जाता है।
मन की समस्त 'कुण्ठाओं' को
पिंजड़े में छोड़ वह आह्लादित
हो गुनगुनाते उड़ता जाता है।।
बँधनों से मुक्त हो- घुटन से निकस वह
मुक्त प्राणी बन अराध्य तक जाता है।।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
अवतरण: 1:30 उपरान्ह, विजया नवमी (वृहष्पतिवार) १९५०, पड़रौना, उत्तर प्रदेश, भारतवर्तमान स्थाई आवास: बेतिया (पश्चिम चंपारण) बिहारभु. पु. चिकित्सा वरीय पदाधिकारीपश्चिम बंगाल व बिहार सरकार स्वास्थ्य सेवाएम (आगे पढ़िये ...)