राणा- शिवा- लक्ष्मीबाई को भूल जिन्ना नेहरु से मिल बँट रोते हो! तिरंगा फहराया नेता सुभाष ने सफेद टोपी पर जान झिड़कते हो!! बहुत घोटालों की जलेबी छानी संकल्पों श्रिंखलाओं के महाजाल में फँस सोते हो! जाग गई फिर सुभाष फौज विप्लव से भी तनिक नहीं डरते हो!! डॉ. कवि कुमार निर्मल
🍀🎄🍃🌿🌴🌴🌿🍃🎄वंसंत ऋतु के अद्भुत सौन्दर्य ने,मेरे हृदय में पुरजोर अगन है लगाई!🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 🔥 🔥तुझे पाने की चाहत ने मेरे हिया में,अश्कों की नदियाँ कई बहवाई!!💦💦💦💦💦💦💦 💦 💦 प्रगाड़ नींद्रा से झकझोर मुझे तुमने जगाया!तन्द्रा को रक्तिम-तिव्र किरणों से दूर भगाया!!☀☀☀☀☀☀☀☀☀ ☀ ☀अहिर्निष तुम्ह
वसंत ऋतु का यह धराधाम भारत भूखण्ड स्वागत् करता हैशिव भार्या प्रीये गंगा जटा से बह निकली- सारा जग कहता हैझरनों की वक्र धारा बन इठला कर गंगा चलती हैंपठारों पर दुस्तर पथ गह लम्बी यात्रा करती हैगंगा-सागर से मिल कपिल मुनि आश्रम तक जाती हैउत्तरांचल से चल पश्चिम तक भूमि सिं
🍀🎄🍃🌿🌴🌴🌿🍃🎄वंसंत ऋतु के अद्भुत सौन्दर्य ने,मेरे हृदय में पुरजोर अगन है लगाई!🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 🔥 🔥तुझे पाने की चाहत ने मेरे हिया में,अश्कों की नदियाँ कई बहवाई!!💦💦💦💦💦💦💦 💦 💦 प्रगाड़ नींद्रा से झकझोर मुझे तुमने जगाया!तन्द्रा को रक्तिम-तिव्र किरणों से दूर भगाया!!☀☀☀☀☀☀☀☀☀ ☀ ☀अहिर्निष तुम्ह
बाहुबली रणक्षेत्र की ओर कूच करते हैंरण जीत कर आते या मर कर अमर होते हैंजो शोषित सह कर आर्तनाद् करते हैंत्रुटिपुर्ण कुपरंपरा चला ये निरीहसम बनसमाज का सर्वथा अहित हीं करते हैंडॉ. कवि कुमार निर्मल
🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚बाल रूप में तुम प्रभु,एक जैसे हीं लगते हो।गुरुकुल में तुम अलग-अलग से हीं दिखते हो।।कभी "बरसाने" में रास रचातेकभी लंका दहन करवाते हो।कभी सुदामा के कच्चे चावल खाते,कभी भीलनी के जूठे बैर खाते हो।।शांत समाधि में कभी दिखते,कभी ''त्रिनेत्रधारी'' बनते हो।कभी दानव का वध तुम करते,कभी भस्मास
❤❤💚💜💙💛💙❤❤💜💚❤प्रकृति पुरुष से है या फिर नारी से है!पिधला हिमखंड हीं बन जाता 'वारी' है!!पुरुष तैलिय दाहक तरल, नारी दाह्य कोमल बाती है! शक्ति संपात कर ज्योत प्रज्वलित वह करती है!! "अर्धनारीश्वर" की यही अमर गाथ, कहानी है! ऋषियों-देवों की यही सास्वत अमृत वाणी है!!💙💚💛 💜💗💜 💛💚💙ड
अवतारअवतार यहीं है।अवतार यहीं है।।मन की परतों को खोल,छुप बैठा वहीं कहीं है।एषणा बुरी नहीं है।बुरी नहीं है।।अनाधिकृत घनसंचय है अपराध,विवेकपूर्ण वितरणसही है।सत्य जहाँ अढिग है,धर्म वहीं है।।साधना सेवा त्याग कासुपथ सही है।।अवतार यहीं है।अवतार यहीं है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚बाल रूप में तुम प्रभु,एक जैसे हीं लगते हो।गुरुकुल में तुम अलग-अलग से हीं दिखते हो।।कभी "बरसाने" में रास रचातेकभी लंका दहन करवाते हो।कभी सुदामा के कच्चे चावल खाते,कभी भीलनी के जूठे बैर खाते हो।।शांत समाधि में कभी दिखते,कभी ''त्रिनेत्रधारी'' बनते हो।कभी दानव का वध तुम करते,कभी भस्मास
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