... यदि व्यक्तिगत रूप से कहूं तो यह थोड़ा अजीब तो है, किन्तु जब बात एक बड़े समूह के अधिकारों और उनके जीवन जीने के ऊपर हो तो फिर यह निर्णय बेहद उचित प्रतीत होता है. भारतीय जीवन दर्शन में तो 'जीव-मात्र' के अधिकारों की बात कही गयी है और 'किन्नरों' के सन्दर्भ में इसे भारतीय समाज में पहले से ज्यादा स्वीकृति भी मिल रही है. उज्जैन के 'सिंहस्थ कुम्भ' में किन्नर समुदाय के 'महामंडलेश्वर' और आचार्यों की घोषणा अपने आप में एक क्रन्तिकारी कदम माना जा रहा है, जिससे आने वाले समय में बड़े बदलावों की शुरुआत हो सकती है. इस विषय पर चर्चा आगे की पंक्तियों में करेंगे, उससे पहले किन्नर समुदाय की सामाजिक स्थिति पर नज़र डालना उचित रहेगा. शादी-विवाहों और बच्चे के जन्म जैसे ख़ुशी के अवसरों पर, नाचते गाते किन्नर आपको जरूर दिख जायेंगे और यही इनका कार्य-क्षेत्र भी अब तक निश्चित रहा है, किन्तु अब हालात बदल रहे हैं और अधिकारों की लड़ाई में माकूल परिवर्तन भी आया है. हालाँकि, अन्य दुसरे समूहों की तरह कभी-कभी कुछ किन्नरों के बारे में आपराधिक ख़बरें भी पढ़ने को मिल जाती हैं तो ज़ोर-ज़बरदस्ती ...