कुछ तो हुआ है जो हमारी आँख नम है,
बहुत बड़ी हलचल है मौसम सम-विषम है।
छुपाओगे अगर इनको बढ़ेंगी मुशकिलें ,
बन जाएंगे नासूर बडे गहरे ज़ख्म हैं।
यकीनन बोझ में दबने लगी है ज़िन्दगी,
अब मुस्कुराने का तो बस कोरा बहम है।
मांगने से मिलेगा कैसे शकून-ए-दिल,
अब तो जो भी पास है रहम-ओ-करम है।
तू ख्वाब आहिस्ता सिरहाने रख उठाकर,
सुनो वक़्त के तेवर अभी काफी गरम हैं।
है शुक्रिया हर चीज़ का जो आपने दिया,
भुला दो शौक़ से हम न भूलेंगे कसम है।
हमको लौट आने दो ज़िन्दगी में दोस्तों,
शायद अभी हालात का रुख भी नरम है।