गांव का एक छत ,उसकी मुंडेर के पास खड़ी एक कुंवारी लड़की , उसके सोच की परिकल्पना करना शायद साहित्यकारों के हैसियत के बाहर की बात है, क्योकि वो देश की प्रधानमंत्री बनने के बारे में भी सोच सकती है और अपने होने वाले पति के घर के बारे में भी .गली से आते जाते अपने से उम्रदराज सभी मर्दों के हिसाब से नज़र फेरना या नज़र चुराकर देख लेना ,इस कला का कोई जबाब नहीं ।उसका सभी से, अदब से बोलना उसकी उच्च कोटि की सभ्यता का प्रतीक जरूर हो सकता है पर उसकी मर्जी नहीं । और उसके सर पर रखे दुपट्टे का बोझ उस भगवन से भी बड़ा है जो दुनिया चला रहा है।
उसकी माँ या उसकी दादी का बताया गया वो रहस्य जो एक रात में बड़े से बड़े फैसले बदल सकता है और साथ ही दो समनांतर दुनिया में जीने का गुण, इन बातो पर वो घंटो तक एकांतवास में मंथन कर सकती है । वो गली के दूसरे छोर पे लगे पेड़ की एक छोटी टहनी को भी घूर सकती है जो शयद उसकी जड़ता का प्रतीक है ,क्योकि उसपर दरवाजे के उस पार की दुनिया देखने की पाबन्दीहै। वो पहली बार मायके लौटीं अपनी सहेलियों द्वारा कही गयी बाते भी सोच सकती है या हो सकता है वो कॉलेज में पढ़ाये गए विषयों के बारे में सोच रही हो। वो सिर्फ सोच भर ही सकती है , क्योकि अगर मोहल्ले के छोटे बच्चो के हठखेलियों को देखकर वो मुस्कुरा भी दे तो उसके जीवन के २० साल बर्बाद माने जायेंगे और वो एक ऐसी श्रेणी में रख दी जाएगी जो हम में से कोई भी नहीं पसंद करता । छत के सीढ़ियों से निचे उतरते वक़्त उसको ये जरूर मालूम होगा की ,उसके स्त्री बनाने के कुछ दिन पहले, उसको अहसास कराया जायेगा, की वो कितनी मायने रखती थी घर के लिए , क्योकि उसने अभी तक यही सुना है ." बेटी तो पराया धन होती है "। साथ ही सुनाई देगी उसको मां के चिल्लाने की आवाज़।